फिर छा गया महर्षि महेश योगी का भावातीत ध्यान

फिर छा गया महर्षि महेश योगी का भावातीत ध्यान

विश्वव्यापी आध्यात्मिक पुनरूत्थान आंदोलन की बदौलत मानसिक शांति और आनंदमय जीवन का दीप जलाने वाले महर्षि महेश योगी का बहुचर्चित भावातीत ध्यान या ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन एक बार फिर सुर्खियों में है। कोरोना महामारी के कारण मानसिक अशांति औऱ अवसाद से ग्रसित लोगों के लिए ध्यान की यह अनोखी और आजमायी हुई विधि संजीवनी का काम कर रही है। पश्चिमी देशों में पचास और साठ के दशक में ही बेहद लोकप्रियता प्राप्त कर चुकी यह विधि भारत के लोग भी अपना रहे हैं। महर्षि योगी के ब्रह्मलीन हुए एक युग बीत चुका है। पर भावातीत ध्यान की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है। इस बात का अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि 126 देशों में बड़ी संख्या में प्रशिक्षण केंद्र चल रहे हैं। इन देशों में 44 यूरोपीय देश, 29 अमेरिकी देश, 34 मध्य पूर्व के देश और 19 एशियाई देश शामिल हैं।

पढ़ें- इस विषाद की दवा भी गीता का ज्ञान ही

मानव के शारीरिक और मानसिक अवस्थाओ को ध्यान में रखकर भावातीत ध्यान के प्रभावों पर अब तक कोई तीन दर्जन से ज्यादा देशों की ढ़ाई सौ प्रयोगशालाओं में सात सौ से ज्यादा अनुसंधान किए जा चुके हैं। कमाल यह कि सभी अनुसंधानों के परिणाम इस ध्यान विधि के पक्ष में रहे और अनेक रहस्यों का खुलासा हुआ था। इसलिए कोरोना महामारी की वजह से संकटग्रस्त लोगों को बार-बार परीक्षित इस ध्यान विधि को अपनाने में कोई हिचक नहीं हुई। हृदय रोगियों पर भावातीत ध्यान के प्रभावों पर बीते साल ही अमेरिका की तीन प्रयोगशालाओं में परीक्षण किया गया था। उसका परिणाम साइंस डायरेक्ट ने अपने अक्तूबर वाले अंक में विस्तार से प्रकाशित किया था। उस परीक्षण के प्रभाव को एक लाइन में कहना हो तो यही कहा जाएगा कि हृदय रोगियों के लिए रामबाण है भावातीत ध्यान।

आमतौर पर माना जाता है कि चेतना की तीन अवस्थाएं हैं। पहली जागृति की चेतना। इस दौरान मन और शरीर दोनों ही क्रियाशील रहते हैं। दूसरी, स्वप्न की चेतना। इसमें मन और शरीर आंशिक रूप से क्रियाशील रहते हैं। तीसरी है, सुषुप्ति की चेतना। इसमें मन और शरीर विश्राम की अवस्था में होते हैं। महर्षि महेश योगी कहते थे कि चेतना की चौथी अवस्था भी होती है और वह है भावातीत चेतना। इसे विश्रामपूर्ण जागृति भी कहा जा सकता है। इसलिए कि इस अवस्था में हम मानसिक रूप से पूर्ण सजग और शारीरिक रूप से गहन विश्राम की अवस्था में रहते हैं। बस, इसे अनुभव करने की जरूरत है और इसी के लिए ही है भावातीत ध्यान विधि। यह ध्यान के अन्य रूपों से अलग है क्योंकि यह सहज और स्वचालित है - यह विचारों को नियंत्रित करने के बजाय मन की प्राकृतिक प्रवृत्ति का उपयोग करता है।

मैंने इस लेख के लिए अनेक शोध पत्रों का अध्ययन किया। मंत्रों का मानव शरीर पर होने वाले प्रभावों का अध्ययन किया। इन सबके आधार पर कहने की स्थिति बनी कि यह साधना वाकई कमाल का असर दिखाती होगी। मैं इन बातों को विस्तार दूंगा। उसके पहले कुछ रोचक तथ्य। महर्षि महेश योगी ज्योतिर्मठ के शंकाराचार्य रहे ब्रह्मलीन ब्रह्मानंद सरस्वती के शिष्य थे। हिमालय की गोद में कठिन साधना और अपने गुरू की ऊर्जा का असर ऐसा हुआ कि महेश प्रसाद वर्मा महर्षि महेश योगी बन गए थे। ब्रह्मानंद सरस्वती ने जब तय किया कि वे शंकराचार्य नहीं रहेंगे तो उनके सामने विकल्प था कि वे महर्षि योगी को शंकराचार्य बना सकते थे। पर उन्होंने ऐसा न करके उन्हें आशीर्वाद दिया दिया था – “तुम्हारी ख्याति दुनिया भर में होगी।“ कालांतर में ऐसा ही हुआ भी। शंकराचार्य के पद पर रहते हुए शायद यह संभव न था। शंकराचार्यों के लिए एक अलिखित नियम है कि वे समुद्र पार नहीं करते। यही वजह है कि स्वामी जयेंद्र सरस्वती के कारण यह नियम भंग हुआ था तो इसका काफी विरोध हुआ था।

महर्षि योगी अपने गुरू से भावनात्मक रूप से इस तरह जुड़े थे कि जब ब्रहमलीन स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती को बनारस के दशाश्वमेघ घाट पर जल समाधि दी जा रही थी तो वे इसे सहन न कर पाए थे और गंगा में छलांग लगा दी थी। उन्हें किसी तरह बचाया गया था। महर्षि के जीवन में अपने गुरू का मानों ऐसा शक्तिपात हुआ था कि ध्यान की उनकी प्रभावशाली विधि और अन्य यौगिक क्रियाओं को लेकर पूरी दुनिया में अकल्पनीय दीवानगी छा गई थी। विभिन्न शोध के परिणामों से लोगों को समझ में आ गया था कि भावातीत ध्यान से न केवल तात्कालिक समस्या का समाधान होगा, बल्कि उच्च चेतना के विकास में भी इसकी अह्म भूमिका होगी। नतीजे भी इसी इसी के अनुरूप मिलते गए थे। इसकी एक तात्कालिक वजह भी थी। बिहार योग विद्यालय के संस्थापक ब्रह्मलीन परमहंस सत्यानंद सरस्वती अपने से आठ से बड़े उस वैज्ञानिक संत के बारे में कहा करते थे कि उन्होंने अपनी शक्तिशाली ध्यान विधि से पश्चिमी देशों को तब अवगत कराया था, जब लाखों नवयुवक मादक द्रव्यों का व्यसन छोड़कर चेतना और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि के मार्ग की तलाश में थे।

भावातीत ध्यान की वैज्ञानिकता को इस तरह समझा जा सकता है। मंत्रो पर अब तक जितने भी शोध हुए, उनसे यही पता चला कि हर शब्द, हर ध्वनि का एक रूप होता है, एक तरंग होती है। इसलिए मंत्रों का उच्चारण करने और उसे दोहरान से स्पंदन होता है। विचार, बुद्धि, भावना और उत्तेजना पर इसका सीधा असर होता है। ध्यान के समय मन अंतर्मुखी होते ही अवचेतन में संचित विचार बाहर निकलता है और चेतना में शुद्धता आती है। फिर ध्यान के जरिए मन को एकाग्र करना आसान हो जाता है। यदि यह सिलसिला जारी रहा तो शरीर के मुख्य चक्र भी जागृत होते हैं। महर्षि महेश योगी का कहते थे कि ध्यान लोगों को अकर्मण्य, नहीं बल्कि बेहतर दृष्टिकोण के साथ क्रियाशील बनाता है। इसलिए उन्होंने भावातीत ध्यान साधकों के लिए कर्म को साधना का अनिवार्य हिस्सा बनाया था।

महर्षि महेश योगी के आध्यात्मिक उतराधिकारी ब्रह्मचारी गिरीश के मुताबिक, ‘‘भावातीत ध्यान के नियमित अभ्यास से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्णता आती है। बुद्धि तीक्ष्ण व समझदारी गहरी होती है, भावनात्मक संतुलन होता है और तंत्रिका-तंत्र को गहन विश्राम मिलने के कारण तनाव दूर होता है, स्नायु मण्डल की शुद्धि होती है।“ शोधों और ध्यान साधकों के व्यक्तिगत अनुभवों से भी इस बात की बार-बार पुष्टि हुई है। कोरोना महामारी के कारण शारीरिक और मानसिक समस्याएं झेलते लोग यूं ही इस ध्यान विधि के लिए दीवाने नहीं हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं)

 

इसे भी पढ़ें-

नई शिक्षा नीति के आलोक में योग शिक्षा

अंधेरे में उम्मीद की रोशनी हैं नेति और कुंजल

 

 

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।