महामारी के एक साल में कितना बदला है कोविड 19 का इलाज?

महामारी के एक साल में कितना बदला है कोविड 19 का इलाज?

सेहतराग टीम

किसी सुनिश्चित उपचार के अभाव में अब भी लक्षणों के आधार पर इलाज किया जाता है

महामारी को आए एक साल हो गया है, फिर भी क्या कोविड 19 के इलाज को लेकर हम कुछ निश्चित हो पाए हैं? विशेषज्ञों और डॉक्टरों का कहना है कि पिछले एक साल में इतने सारे मरीज़ों का इलाज करने के अनुभव से निश्चित रूप से रोग को मैनेज करने के तरीके समझने में थोड़ी मदद तो मिली है। लेकिन ढेर सारे सवाल अब भी अनुत्तरित हैं।

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युवा मरीजों में बायोमार्कर

एक अनिश्चितता, बिना किसी ज्ञात रिस्क फैक्टर के किसी युवा मरीज में रोग की गंभीरता का अंदाज़ा लगाने वाले बायोमार्करों से जुड़ी है। अपोलो के एक डॉक्टर का कहना है, ‘कुछ युवा मरीज किसी गंभीर कांप्लीकेशन के बिना ठीक हो जाते हैं तो कुछ की हालत तेज़ी से बिगड़ जाती है।’ उन्होंने यह भी कहा कि कोविड मरीजों में प्लाज्मा थैरेपी के असर और टाइमिंग को लेकर भी काफी भ्रम की स्थिति है।

एम्स गाइडलाइंस में बदलाव

देश का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल एम्स भी महामारी के आने के बाद से इस रोग के कलीनिकल मैनेजमेंट के लिए अपने गाइडलाइंस को छह से सात बार संशोधित कर चुका है। शुरुआत में एंटी-मलेरिया दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को भी संक्रमण के इलाज में इस्तेमाल किया जा रहा था, लेकिन कई अध्ययनों में उसका कोई खास असर न देखे जाने पर उसका प्रयोग बंद कर दिया गया। अब मरीजों का सही चयन, जो इन थैरेपियों से लाभान्वित हो सकते हैं और इन थैरेपियों की टाइमिंग सबसे अहम चीज़ साबित हुई है। एम्स के एक डॉक्टर कहते हैं, ‘एंटीवायरल दवा रेमडेसिविर, जो इन दिनों भारी डिमांड में है, को सिर्फ मध्यम और गंभीर लक्षणों वाले मरीजों को दिया जाना चाहिए, हल्के लक्षणों वाले मरीजों को नहीं।’ केंद्र सरकार ने कहा है कि डॉक्टरों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रेमडेसिविर दवा का ‘तर्कपूर्ण और विवेकपूर्ण’ प्रयोग हो और उसका प्रयोग अधिकांशत: अस्पताल में भर्ती कोविड मरीजों के लिए होना चाहिए, घर में ठीक हो रहे मरीजों के लिए नहीं।

प्लाज्मा थैरेपी कितनी असरदार

डॉक्टरों के मुताबिक दुनिया भर में प्लाज्मा थैरेपी को लेकर बहुत से अध्ययन हुए हैं और हो रहे हैं, जिन्होंने बहुत कम मरीजों में सीमित फायदे दर्शाए हैं। अस्पताल में भर्ती सभी मरीजों पर उसका प्रयोग जरूरी नहीं है। यह थैरेपी खास तौर पर बुजुर्ग रोगियों में मददगार है, जिनमें बहुत कम एंटीबॉटी होती है। युवा मरीजों में यह इलाज उल्टा असर कर सकता है, क्योंकि यह उनमें अधिक आक्रामक इम्यून रेस्पांस और क्लॉटिंग को प्रेरित कर सकता है।

दवाओं की टाइमिंग

डॉक्टरों का कहना है कि पिछले एक साल में रोग को मैनेज करने के तरीकों पर काफी कुछ सीख मिली है और बड़े सेंटरों पर नतीजे बेहतर हैं। रेमडेसिविर जैसी दवाओं और स्टेरॉयड की पहचान की गई है जो सही समय पर इस्तेमाल करने पर लक्षणों को मैनेज करने में मददगार होते हैं। जैसे, रेमडेविसिविर को रोग की शुरुआत में दिया जाना चाहिए, जब ऑक्सीजन की जरूरत हो। लक्षणों की शुरुआत के 14 दिन बाद उसे देने का कोई तुक नहीं है, जब वायरस शरीर से साफ हो चुका होता है। इसी तरह, कोविड मैनेजमेंट में प्लाज्मा थैरेपी की भूमिका बहुत सीमित है।

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