गांवों-कस्बों में आसानी से होगा स्ट्रोक का इलाज, ये स्कैनर बदल देगा हालात

गांवों-कस्बों में आसानी से होगा स्ट्रोक का इलाज, ये स्कैनर बदल देगा हालात

रोहित पाल

स्ट्रोक यानी मस्तिष्काघात इंसान के दिमाग में होने वाली ऐसी समस्या है जिसका समय पर इलाज न हो तो आदमी या तो मौत के हवाले हो जाता है या अपना शेष जीवन दूसरों पर आश्रित होकर गुजारता है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर साल करीब 18 लाख लोग स्ट्रोक का शिकार होते हैं और 2016 में भारत में बीमारियों से होने वाली मौतों के मामले में स्ट्रोक 5वीं सबसे बड़ी वजह रही जबकि 1996 में ये 12वीं सबसे बड़ी वजह थी। यानी सिर्फ 10 सालों में स्ट्रोक के मामलों में 100 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गयी है। स्ट्रोक की स्थिति दिमाग में खून के थक्के जमने के कारण होती है और इसके कारण दिमाग शरीर के अन्य हिस्सों को जरूरी निर्देश भेजने में नाकाम हो जाता है और शरीर लकवे का शिकार हो जाता है। कई शोध से ये साबित हो चुका है कि खून के थक्के को जितनी जल्दी दवाओं के जरिये गला दिया जाए, मरीज के पूरी तरह ठीक होने के चांस उतने ही अधिक बढ़ जाते हैं। मगर भारत में दुर्भाग्य से मरीज को ये इलाज बहुत देर से मिल पाता है। आंकड़े बताते हैं कि शहरों के मुकाबले भारत के गांवों में स्ट्रोक के कारण लोगों की मौत ज्यादा होती है और दो बड़ी वजहें हैं। पहली वजह तो ये है कि पूरे देश में स्ट्रोक का इलाज करने में सक्षम न्यूरोलॉजिस्ट की संख्या करीब 2000 के करीब है और इनका भी बड़ा हिस्सा महानगरों में सिमटा हुआ है। दूसरी बड़ी वजह है स्ट्रोक का समय पर पता नहीं चल पाना।

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दरअसल दिमाग में किसी भी बदलाव का पता लगाने के लिए सीटी स्कैन और एमआरआई जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इन दोनों ही जांच के लिए भारी भरकम मशीनों की जरूरत होती है जो कि काफी महंगी आती हैं। एमआरआई मशीन की कीमत 3 करोड़ से अधिक जबकि सीटी स्कैन मशीन की कीमत 1 करोड़ रुपये के करीब है। जाहिर है गांवों और कस्बों को तो छोड़िये, छोटे शहरों के अस्पतालों में भी ये मशीनें उपलब्ध नहीं होती हैं। ऐसे में स्ट्रोक के शिकार मरीजों को बड़े शहरों का रुख करना पड़ता है और जबतक जांच के बाद इलाज आरंभ होता है तबतक बहुत देर हो चुकी होती है और मरीज हमेशा के लिए या तो लकवाग्रस्त हो जाता है या मौत का शिकार बन जाता है।

मगर लगता है कि अब ये स्थिति बदल सकती है। दरअसल भारत के कुछ उत्साही युवाओं ने एक ऐसा छोटा स्कैनर बनाने में सफलता हासिल की है जो आकार में हेयर ड्रायर जैसी छोटी है, कहीं भी ले जाने में आसान है और सबसे बड़ी बात, इसकी कीमत इतनी कम है कि छोटे शहरों और कस्बों के छोटे अस्पताल भी इसे अपने यहां रख सकते हैं और स्ट्रोक की आशंका होने पर मरीज की शुरुआती जांच करके उसका इलाज तत्काल शुरू किया जा सकता है। एक ऐसे दौर में जबकि पूरी दुनिया इंटरनेट के जरिये जुड़ी हुई है, इस छोटे स्कैनर के जरिये की गई जांच रिपोर्ट बड़े अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट को भेजकर उनकी सलाह से तत्काल इलाज शुरू किया जा सकता है। दवाएं और इंजेक्शन तो किसी भी शहर में आसानी से उपलब्ध हो सकती हैं मगर बड़ी मशीनें और विशेषज्ञ डॉक्टर हर जगह उपलब्ध नहीं हो सकते। अब इस स्कैनर के जरिये इनमें से एक बड़ी बाधा दूर हो गई है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) कानपुर के इनोवेशन एंड इंक्यूबेशन सेंटर के सहयोग से रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की पूर्व वैज्ञानिक शिल्पा मलिक के स्टार्टअप ने इस स्कैनर को विकसित किया है।

इस डिवाइस के बारे में अधिक जानने के लिए सेहतराग ने डिवाइस बनाने वाली कंपनी 'बायो स्कैन' के सीईओ अनुपम लवानिया से बात की। उन्होंने बताया यह मशीन ब्रेन हेमरेज और ब्रेन स्ट्रोक जैसे मामलों में गेम चेंजर की तरह है। उन्होंने कहा कि, किसी अस्पताल को सीटी स्कैन या एमआरआई की सुविधा मुहैया कराने के लिए करोड़ों रुपए खर्चने पड़ते हैं। लेकिन उनकी मशीन की कीमत बहुत कम है। जिसके कारण कोई भी अस्पताल बड़ी आसानी से यह सुविधा मुहैया करा सकेगा। अब इससे मरीजों को स्कैनिंग के लिए कहीं और नहीं जाना पड़ेगा, जिससे समय की बचत होगी और मरीज का तुरंत सही उपचार हो जाएगा। मरीजों को मौत के सभांवित खतरे से बचाया जा सकेगा।

इसके अलावा बड़ी मशीनों की देखरेख और रखरखाव के लिए अलग से व्यवस्था करनी पड़ती है, जैसे अलग से एक कमरा, साफ सफाई आदि। लेकिन इस मशीन के लिए अलग से किसी  प्रकार की व्यवस्था नहीं करनी होगी। आगे उन्होंने बताया कि इस मशीन को कहीं भी आसानी से ले सकते हैं। जैसे कि अगर कहीं किसी व्यक्ति को किसी दुर्घटना में सिर में कोई क्षति पहुंचती है तो मशीन वहां ले जाकर भी स्कैन कर तुरंत उपचार शुरू किया सकेगा।

अनुपम लवानिया ने आगे बताया कि सैरिबो नमक इस स्कैनर को हेयर ड्रायर की तरह सर पर घुमाते ही दो मिनट में सटीक रिपोर्ट सामने आ जाती है। इस स्कैनर से दिमाग से संबंधित अन्य समस्याओं में भी प्रयोग कर सकते हैं।

उत्पाद की बिक्री:

फिलहाल इस समय यह स्कैनिंग मशीन गुजरात के अलावा लखनऊ और जयपुर खरीद सकते हैं। इसके अलावा आप इसे कंपनी की वेबसाइट से खरीद सकते हैं।

दूसरा प्रोडक्ट :

इसके अलावा यह कंपनी ऐसे प्रोडक्ट पर काम कर रही है जो प्रीटर्म डिलीवरी यानी तय समय से पहले बच्चा पैदा होने में होने वाली समस्याओं से निपटने में मदद करेगी। जल्द ही यह भी प्रोडक्ट बाजार में उपलब्ध हो जाएगा।

कंपनी के बारे में...

बायो स्कैन कंपनी की फाउंडर शिल्पा मलिक हैं। एनआइटी जमशेदपुर से वर्ष 2004 में कंप्यूटर साइंस में बीटेक के बाद शिल्पा ने डीआरडीओ में 2007 तक सेवाएं दीं। इसके बाद निजी कंपनियों में सेवाएं दीं और फिर 2013 में अपना स्टार्टअप 'बायो स्कैन' शुरू कर शोध में जुट गयीं। शिल्पा बताती हैं कि यह स्कैनर नियर इंफ्रारेड स्पेक्ट्रो स्कोपी तकनीक पर आधारित है। नियर इंफ्रारेड लाइट दिमाग और तंत्रिकाओं के सूक्ष्मतम परिवर्तनों को चिन्हित करती है और सॉफ्टवेयर पर सारा डाटा दो मिनट में रिपोर्ट के रूप में सामने आ जाता है। तीन मॉडल तैयार किए गए हैं, जिनकी कीमत पांच लांख से 8 लाख रुपए के बीच है।

 

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