कोरोना संक्रमितों पर ऐसा काम करता है योग

कोरोना संक्रमितों पर  ऐसा काम करता है योग

बात तो कोविड-19 और योग के प्रभावों पर होनी है। पर शुरूआत एक औपनिषदिक कथा से। कौशल प्रदेश के विख्यात ऋषि थे अश्वलायन। पांडित्य उनके पास था, पर अनुभवात्मक ज्ञान नहीं था। ऐसे समझिए कि वे आम के बारे में जानते थे। पर आम का स्वाद चखा न था। ऋषि थे तो शब्दों से उन्हें सब पता था। शस्त्रों में जो कहा गया है, उन्हें ज्ञात था। सिद्धांत से परिचित थे। पर जब ब्रह्मविद्या की जिज्ञासा हुई तो महर्षि पिप्पलाद के पास ऐसे गए मानों उनका दिमाग खाली हो और वे कुछ भी नहीं जानते हैं। समिधा लेकर नम्रतापूर्वक खड़े हो गए। महर्षि पिप्पलाद के योग्य शिष्य बन गए। तभी उनका सैद्धांतिक ज्ञान अनुभव में तब्दील हो पाया था।

सैद्धांतिक ज्ञान हो और अनुभवात्मक ज्ञान न हो तो उसका परिणाम क्या होता है, इसे ऐसे समझिए। बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती शिष्यों के साथ अपने अनुभव, अपना संस्मरण साझा किया करते थे। वे जब विदेश भ्रमण पर थे तो हवाई जहाज में उनकी मुलाकात एक ऐसे अन्वेषी से हो गई, जिसने रसगुल्ला पर अनुसंधान किया था। उसने रसगुल्ले के बारे में काफी कुछ बतलाया। पर इसी बीच एक घटना घटित हो गई। स्वामी जी के पास रसगुल्ला था। उन्होंने बैग से निकाला और सहयात्री को भी खाने के लिए दिया। सहयात्री ने रसगुल्ला कभी देखा न था। लिहाजा वह पूछ बैठा कि यह क्या है? स्वामी जी ने कहा कि यह वही चीज है, जिसके बारे में आप लंबा व्याख्यान दिए जा रहे थे....। इसलिए मैं इस कॉलम में अक्सर सलाह देता हूं कि लेख या किताबें पढ़कर कभी योगाभ्यास नहीं करना चाहिए। सैद्धांतिक ज्ञान योग्य योग शिक्षक के चयन और अभ्यास में तो सहायक होता है। पर जब अभ्यास करना हो तो योग्य प्रशिक्षक का मार्ग-दर्शन जरूरी है।

कोरोना महामारी की दूसरी लहर आई तो तमाम एहतियात के बावजूद मैं गंभीर रूप से कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गया। अनेक लोगों के फोन आते थे। वे कहते कि आप तो योग विद्या पर इतना लिखते हैं। यौगिक उपाय कीजिए। सब ठीक हो जाएगा। खैर, कोरोना की दूसरी लहर में अनेक लोगों का ज्वर दस-बारह दिनों तक भी रहता है। चिकित्सक कहते हैं कि छठा दिन महत्वपूर्ण है। यदि ज्वर न जाए तो चिकित्सकों की राय से स्टेरायड के जरिए इलाज पर विचार होना चाहिए। मेरे चिकित्सक ने भी कुछ ऐसी अनुशंसा की। पर स्टेरायड को लेकर तरह-तरह की आशंकाएं थीं। समस्या बढ़ती देख मैं आठवें दिन अपने गुरू परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती का ध्यान करते हुए सो गया।

अगले दिन सुबह बिहार योग विद्यालय के एक वरिष्ठ संन्यासी का फोन आया। उन्होंने सुझाव दिया कि अन्य दवाओं के साथ ही महासुदर्शन चूर्ण लीजिए। बुखार उतर जाएगा। ठीक ही बुखार कम होने लगा और उतर गया। स्टेरायड लेने की जरूरत ही न पड़ी। बीमारी के दौरान आक्सीजन का लेवर थोड़ा नीचे जाने लगा था तो उसी समय संभवत: गुरूजी की प्रेरणा से बिहार योग विद्यालय के पूर्व छात्र और दिल्ली के लोकप्रिय योगाचार्य शिवचित्तम मणि का फोन आ गया कि मकरासन, उदर श्वसन, नाड़ी शोधन प्राणायाम और भ्रामरी प्राणायाम करें। पर श्वास-प्रश्वास पर एकाग्रता के साथ। आर्श्चजनक ढंग से आक्सीजन के स्तर में सुधार हो गया और मानसिक शांति भी मिली।

कोविड-19 का दुष्प्रभाव मेरे वोकल कॉर्ड पर पड़ा था। आवाज एकदम दब गई थी। चिकित्सकों ने कहा कि इसके इलाज के पहले कई जांच की जरूरत होगी और आवाज लौटने में दो महीनों का वक्त लग सकता है। बिहार योग विद्यालय के वरिष्ठ संन्यासी और मेरे श्रद्धेय स्वामी जी ने इसके लिए काकी मुद्रा करने का सुझाव दिया। कहा कि इससे आवाज भी लौटेगी और फेफड़े को भी बल मिलेगा। यकीन मानिए कि काकी मुद्रा दो दिनों तक चार बार करने के साथ ही मेरी आवाज खुल गई। वोकल कॉर्ड की समस्या जाती रही। कोरोना संक्रमण खत्म होने के बाद कुछ योगाचार्यों की सलाह पर कपालभाती और भस्त्रिका प्राणायाम करने लगा। मुंह से और नाक से खून आने लगा। अजीब तरह का भारीपन महसूस हुआ। फिर जल्दी ही समझ में आया कि ये अभ्यास बीमारी से उबरने के पंद्रह-बीस दिनों बाद ही करने चाहिए।

आखिर कोरोना से संक्रमित मरीजों के लिए मकरासन, उदर श्वसन, नाड़ी शोधन प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम और काकी मुद्रा जरूरी क्यों है? मकसासन वैसे तो पीठ के नीचले भाग के दर्द या मेरूदंड की किसी भी गड़बड़ी में प्रभावकारी है। पर दमा और फेफड़े के रोगियों के लिए भी बेहद लाभकारी इसलिए है कि इससे फेफड़े में अधिक वायु प्रवेश करता है। इस आसन का महत्व एलोपैथी के चिकित्सकों ने भी समझा और खुलकर अनुशंसा की। उदर श्वसन से श्वसन का मार्ग प्रशस्त होता है। इसे श्वसन की सबसे स्वाभाविक व प्रभावी विधि माना जाता है। जाहिर है कि फेफड़े को मजबूती प्रदान करके आक्सीजन का स्तर सुधारने में इसकी भी बड़ी भूमिका होती है। हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है कि प्राण-वायु में अशांति के कारण दमा, खांसी, सरदर्द, आखों की बीमारियों सहित कई बीमारियां बिन बुलाए आ जाती है। पर प्राण वायु संतुलित हो तो फेफड़े से लेकर रक्त और शरीर की सभी कोशिकाओं में आक्सीजन पर्याप्त रूप से रहता है। नाड़ी शोधन प्राणायाम, जिसे अनुलोम-विलोम भी कहा जाता है, पर अनेक अनुसंधान हुए हैं। रक्त में पर्याप्त आक्सीजन पहुंचाने में इसकी भूमिका अतुलनीय है।

हाल ही में हुए एक शोध में ये बात सामने आई है कि नाइट्रिक ऑक्साइड कोविड-19 से उबारने में मदद कर सकती है और लाखों लोगों की जान बचा सकती है। शोध के अनुसार, ये एक एंटीमाइक्रोबियल और एंटी-इंफ्लामेटरी मोलीक्यूल है, जो पल्मानरी वैस्क्यूलर के काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मूल रूप से, नाइट्रिक ऑक्साइड शरीर में प्राकृतिक रूप से उत्पादित एक पदार्थ है। शोधों से साबित हो चुका है कि भ्रामरी प्राणायाम प्राकृतिक रूप से उत्पादित होने वाले नाइट्रिक ऑक्साइड में पंद्रह फीसदी तक की वृद्धि कर देता है। इसलिए योगियों ने कोरोनाकाल में भ्रामरी प्राणायाम पर काफी बल दिया। काकी मुद्रा से मानसिक तनाव कम होता है। रक्तचाप सामान्य रहता है। पाचन-क्रिया ठीक रहती है औऱ रक्त शुद्ध होता है। गले से संबंधित बीमारियां ठीक होती हैं। इन अभ्यासों के साथ ही नेति किया जाए तो सोने पे सुहागा। इन तथ्यों से साफ है कि कोरोना संक्रमण और उसके कुप्रभावों को दूर करने में योग बेहद प्रभावकारी है।  

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं योग विज्ञान विश्लेषक हैं।  उनके आलेख ushakaal.com पर पढ़े जा सकते हैं।)

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