गठिया की वजह से बढ़ रहे हैं हृदय रोग और किडनी के मरीज

गठिया की वजह से बढ़ रहे हैं हृदय रोग और किडनी के मरीज

सेहतराग टीम

गठिया को रह्मूमेटॉयड आर्थराइटिस भी कहा जाता है। यह सबसे अधिक दुखदायी और तकलीफदेह आर्थराइटिस है। गठिया मुख्य तौर पर हड्डियों और मांसपेशियों में सूजन आ जाने की बीमारी है। अन्य आर्थराइटिस की तरह गठिया से मुख्य तौर पर शरीर के जोड़ प्रभावित होते हैं, लेकिन यह बीमारी हृदय, फेफड़े, किडनी, रक्त नलिकाओं को भी प्रभावित कर सकती है। इस बीमारी से आम तौर पर प्रभावित होने वाले जोड़ हैं हाथ, कलाई और पैर, लेकिन इससे शरीर के साइनोवियल जोड़ प्रभावित हो सकते हैं। रह्मूमेटॉयड आर्थराइटिस हमारे देश में विकलांगता का मुख्य कारण हैं। यह बीमारी मुख्य तौर पर मध्यम वर्ग आयु के लोगों को शिकार बनाती है। हालांकि इस बीमारी से 16 वर्ष से कम उम्र के लोग भी प्रभावित हो सकते हैं।

अभी हाल तक यह एक आम धारणा थी कि रह्मूमेटॉयड आर्थराइटिस का कोई इलाज नहीं है और मृत्यु के सतह ही यह रोग दूर होता है, लेकिन आज यह धारणा गलत साबित हो चुकी है। इस बीमारी का संतोषजनक इलाज संभव है। समुचित इलाज न होने पर यह बीमारी असामयिक मौत का कारण बन सकती है।

गठिया के लक्षण:

रह्मूमेटॉयड आर्थराइटिस के हमले के तौर-तरीके एवं लक्षण मरीजों के अनुसार बदलते रहते हैं। ज्यादातर मरीजों में यह बीमारी कमजोरी, थकावट, भूख नहीं लगने (एनोरेक्सिया) तथा जोड़ों और मांसपेशियों में अस्पष्ट किस्म की तकलीफ के साथ-साथ शुरू होती है। ये लक्षण कुछ सप्ताह या कुछ महीने रह सकते हैं। इन लक्षणों के कारण शुरुआत में इस बीमारी की सही पहचान नहीं हो पाती है। इस वजह से मरीज या तो बीमारी की अनदेखी करता है या एक डॉक्टर से दुसरे डॉक्टर तक चक्कर लगाता है। जिन मरीजों में इस बीमारी के लक्षण साफ़ तौर पर नजर आते हैं, उनमें एक साथ कई जोड़े प्रभावित होते हैं। इससे जोड़ों में सूजन के साथ दर्द होता है और सुबह-सुबह जोड़ों में जकड़न होती है। इस बीमारी में तकलीफ घटती-बढ़ती रहती है, लेकिन इस बीमारी का पुअर इलाज नहीं होने पर बीमारी के घटने की संभावना नहीं के बराबर होती है।

गठिया का उपचार:

ज्यादातर मामलों में रह्मूमेटॉयड आर्थराइटिस की शीघ्र पहचान एक्स-रे और रक्त परीक्षण की मदद से हो जाती है। मौजूदा समय में चिकित्सक की कोशिश मरीज को दर्द और जोड़ों में जकड़न से निजात दिलाने, जोड़ों में विकृतियाँ और विकलांगता नहीं होने देने, जोड़ों में एक्टिवनेस बनाए रखने, जोड़ों को और अधिक क्षति से बचाने और अधिक जटिलताएं होने से रोकने की होती है। जोड़ों में बहुत अधिक बहुत अधिक विकृतियां आ जाने पर जोड़ों को बदलने और अन्य चकित्सीय तरीकों की मदद लेने की जरूरत पड़ती है।

बीमारी की शुरूआती अवस्था में इलाज के पहले चरण में दर्दनिवारक तथा सूजन रोकने वाली दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इन दवाइयों का बीमारी के उपचार या रोकथाम में कोई भूमिका नहीं है। इस कारण ये दवाइयां लंबे समय तक नहीं लेनी चाहिए, क्योंकि इनका लंबे समय तक सेवन करने पर अमाशय, किडनी और रक्त कोशिकाओं पर पड़ता सकता है।

हालांकि आज रह्मूमेटॉयड की कुछ अच्छी दवाइयां आई हैं, जिनसे इस बीमारी को और अधिक बढ़ने से रोकने में मदद मिलती है। इनमें से कुछ दवाइयां रोग प्रतिरक्षण क्षमता को दबाती हैं। ऐसी ही कुछ दवाइयों का इस्तेमाल कैंसर के मरीजों के लिए भी होता है।

मरीज और डॉक्टर को इस बात का पर ध्यान देना चाहिए कि जोड़ों में विकृतियां अथवा विकलांगता विकसित नहीं होने पाए। इसमें फिजियोथेरैपी की महत्वपूर्ण भूमिका है। जो मरीज इस बीमारी के कारण चलने-फिरने में असमर्थ हो जाते हैं और एक तरह से अपाहिज जीवन जीने को मजबूर हो जाते हैं, उन्हें 'की होल' सर्जरी व जोड़ बदलने के ऑपरेशन कराने की जरूरत पड़ जाती है।

भविष्य की उपचार विधियां:

निकट भविष्य में कुछ ऐसी उपचार विधियों के विकसित होने की उम्मीद है, जिससे न केवल इस बीमारी पर नियंत्रण किया जा सकेगा, बल्कि इस बीमारी का एक हद तक इलाज भी हो सकेगा। जीन थेरैपी और अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण जैसी नई उपचार विधियां इस बीमारी के उपचार में महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं।

 

इसे भी पढ़ें-

दिमाग की क्षमता और याददाश्त को बढ़ाएंगे ये 5 आसान टिप्स और कुछ आहार, जानें कैसे

मोटापे से न हाें परेशान, ये छोटा बदलाव घटाएगा आपका वजन                                                         

                      

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।