योग के नाम पर परोस रहे हैं अधकचरा ज्ञान
भारतीय योगियों द्वारा विकसित ज्ञान योग को बाजार की वस्तु बना दिया गया है। बाजार कुछ भी खरीद और बेच सकता है। तभी तो योग के नाम पर आपके सामने आज कुछ भी परोसा जा रहा है। बानगी देखें, बियर योग, डॉग योग, एरियल योग यानी योग का नाम जोड़कर कुछ भी बनाया जा सकता है। खास बात यह है कि अपने जीवन की आपाधापी में परेशान युवा पीढ़ी योग का वास्तविक ज्ञान हासिल करने के बदले बाजार के परोसे इन व्यंजनों के जाल में फंस भी रही है। वैसे ये सब अगर विदेशों में हो रहा होता तो बात फिर भी समझ में आती है मगर मुश्किल ये है कि योग के ये रूप भारतीयों के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं।
दिल्ली में कई निजी संस्थाएं एरियल योग करवाती है। इसमें योग के साथ आनंद का तड़का लगाया जाता है। ये सबको पता है कि योग वास्तव में अध्यात्म की पहली सीढ़ी है। मगर इसे आनंद के साथ जोड़कर आध्यात्मिक पहलू को तिलांजली दे दी गई है।
हमारे जीवन में तनाव को कम करने में पालतू पशुओं की अहम भूमिका होती है। चिकित्सक भी मानते हैं कि पालतु पशुओं के साथ समय बिताने हमें फिर से ऊर्जावान बना देता है। मगर इसके साथ योग शब्द जोड़ने की चतुराई तो बाजार ही कर सकता है। तभी तो डॉग योगा का आविष्कार हुआ है। यानी कुत्ते के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताइये और साथ में व्यायाम भी करिये तो उसे डॉग योगा कहा जाएगा।
बहुत से लोग हैं जो योग के इन तरीकों को सही नहीं मानते। योग गुरु सुनील सिंह कहते हैं कि दरअसल योग के ये सभी रूप शरीर तथा ऊर्जा की सही समझ न होने का परिणाम हैं। बाजार द्वारा निर्देशित इन उत्पादों में योग का मूल आध्यात्मिक अंश नहीं होता है। सुनील सिंह को हाल ही में दुनिया के चुनिंदा योग गुरुओं में शामिल किया गया है। सेहतराग से सुनील सिंह कहते हैं कि पारंपरिक योग ज्ञान इतना विशद है कि उसी को अगर सही तरीके से किया जाए तो इंसान को अनगिनत लाभ मिलेंगे मगर मुश्किल ये है कि इस ज्ञान तक पहुंचाने वाले गुरुओं की भारी कमी है और इसकी का फायदा अधकचरे ज्ञान वाले लोग उठा रहे हैं।
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