त्राटक योग का चमत्कार तो देखिए

त्राटक योग का चमत्कार तो देखिए

नेत्र रोग ही नहीं, हृदय रोग से लेकर अनिद्रा जैसी बीमारियों में भी त्राटक योग बेहतर परिणाम देता है। कुछ विकसित देशों में तो त्राटक पर काफी अध्ययन किया जा चुका है। पर अब भारत में भी इस क्रिया की महत्ता को समझते हुए सीमित संसाधनों के बावजूद कई अध्ययन किए जा चुके हैं। यह सिलसिला जारी है। ज्यादातर अध्ययन आंखों से संबंधित बीमारियों को लेकर किए गए हैं। अब मनोकायिक और हृदय संबंधी बीमारियों में त्राटक के प्रभावों पर अध्ययन पर जोर ज्यादा है। महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग के षटकर्मों में प्रमुख त्राटक क्रिया के बारे में ज्यादातर लोग   यही जानते रहे हैं कि त्राटक बहिर्मुखी मन को अंदर की ले जाने की एक महत्वपूर्ण योग साधना है। इसके चिकित्सकीय पक्षों पर कम ही चर्चा हुई है।

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ग्लूकोमा के रोगियों के लिए आंखों का प्रेशर काफी मायने रखता है। दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र के साझा प्रयास से यौगिक क्रियाओं के जरिए प्रेशर नियंत्रित करने के लिए अध्ययन किया गया। एम्स के फिज़ीआलजी विभाग के डॉ. संकल्प व डॉ आरके यादव और डॉ राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र के डॉ तनुज दादा व मुनीब अहमद फैक ने संयुक्त रूप से अध्ययन किया। अध्ययन के दौरान देखा गया है कि त्राटक प्रेशर कम करने में मददगार है। इसके साथ ही महसूस किया गया कि साक्ष्य-आधारित चिकित्सा के लिए वैज्ञानिक परीक्षण होना चाहिए।

हृदय की अनियमित धड़कन बड़ी समस्या बनकर उभरी है। योग शिक्षक ऐसे मामलों में पनव मुक्तासन के साथ ही योगनिद्रा या अजपाजप करने की सलाह देते रहे हैं। हाल ही बेंगलुरू स्थित स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान में इस समस्या को लेकर अध्ययन हुआ तो पता चला कि अनियमित धड़कन की समस्या को नियंत्रित करने में प्रत्याहार की क्रियाओं की तरह ही त्राटक भी अहम् भूमिका निभाता है। इस अध्ययन के लिए 20 से 33 वर्ष के कुल 30 व्यक्तियों का चयन किया गया था। वे सभी दक्षिणी भारत के एक योग विश्वविद्यालय के छात्र थे।

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रक्तचाप को नियंत्रित करने में त्राटक के प्रभाव पर परीक्षण किया गया। यह काम पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय में हुआ। विश्व विद्यालय के विनय भवन की पांच छात्राओं, जिनकी उम्र 18 से 22 साल के बीच थी, पर अध्ययन किया गया। देखा गया कि त्राटक के बाद सिस्टोलिक रक्तचाप में काफी कमी आई। पर डायस्टोलिक रक्तचाप में खास बदलाव नहीं आया। वैसे अनेक योग शिक्षकों का दावा है कि प्राणायाम के साथ इस क्रिया के चमत्कारिक नतीजे मिलते हैं। पर पुणे स्थित भारती विद्यापीठ डिम्ड यूनिवर्सिटी में डॉ गौरव पंत के निर्देशन में शोध छात्र कृपेश कर्मकार ने बुजुर्गों की आंखों की रोशनी में ज्यादा स्पष्टता लाने में त्राटक के प्रभाव पर अध्ययन किया तो वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि बुजुर्गों की दृष्टि अनुभूति बढ़ाने के लिए त्राटक का इस्तेमाल एक तकनीक के रूप में किया जा सकता है।

अध्ययनों से पता चला है कि आंखों की कम होती रोशनी के साथ ही स्नायविक गड़बड़ियों, अनिद्रा, चिंता, परेशानियों और अन्य मानसिक समस्याओं से ग्रस्त लोगों के लिए भी त्राटक का अभ्यास बेहद लाभप्रद होता है। निकट तथा दूर के दृष्टि दोषों से परेशान व्यक्तियों के त्राटक के नियमित अभ्यास से लाभन्वित होने के उदाहरण भरे पड़े हैं। कुछ नए अध्ययनों से पता चला है कि त्राटक से स्मरण-शक्ति और एकाग्रता का विकास होता है। आसानी से ध्यान लग जाता है। जिन्हें रात्रि में देर तक नींद न आने की शिकायत होती है, वे सोने से पहले बीस मिनट तक त्राटक का अभ्यास करें तो नींद न आने की समस्या जाती रहेगी। अध्ययनों के दौरान त्राटक के अभ्यास से अतीन्द्रिय ज्ञान की क्षमता विकसित करके मानसिक शक्तियों को बढ़ाने के सूत्र भी मिले हैं। अध्ययनों से पता चला कि त्राटक के दौरान चेतना का भटकाव रूक जाने से कई प्रकार के चमत्कारिक प्रभाव दिखने लगते हैं। इस क्रिया के प्रारंभ में तो मन के भटकाव को रोकने के लिए कड़ा संघर्ष करना होता है। पर हार माने बिना अभ्यास जारी रखने से धीरे-धीरे मन संघर्ष करना छोड़ देता है।

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त्राटक करने की कई विधियां प्रचलित हैं। मोमबत्ती, स्फटिक, चांद-तारे, दीपक या किसी अन्य बिंदु पर ध्यान लगाकर त्राटक किया जाता है। त्राटक कभी भी किया जा सकता है। पर अहले सुबह अथवा रात्रि का समय सबसे उपयुक्त होता है। शुरू में पंद्रह-बीस मिनट से ज्यादा त्राटक करने की सलाह जाती है। साथ ही चेतावनियां भी हैं। जैसे, त्राटक के समय चश्मा नहीं पहनना चाहिए। आंखों पर जो पड़ रहा हो तो त्राटक का अभ्यास रूक कर करना चाहिए। कई बार आंखों से आंसू आने लगते हैं। वैसे में तुरंत आंखों को बंद कर लेना चाहिए। यदि किसी चमकदार वस्तु जैसे मोमबत्ती की तेज लौ या जल में सूर्य के प्रतिबिंब पर दो माह से ज्यादा त्राटक नहीं करना चाहिए।

अब आइए जानते हैं कि त्राटक हमारे मन पर किस तरह प्रभाव डालता है। जब हम चार्ज होते हैं तो हमारा शरीर इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फील्ड बनाता है, जो मन को नियंत्रित करने में काम आता है। योग पर वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा स्थापित योग रिसर्च फाउंडेशन के अनुसंधानकर्त्त्ताओं ने अपने अध्ययनों के दौरान देखा कि मोमबत्ती या किसी अन्य वस्तु को एकटक देखते हुए त्राटक करने पर आंखों की रेटिना पर उसका प्रतिबिंब बनता है। वही प्रतिबिंब दृष्टि नाड़ियों (आप्टिक नर्व) के जरिए मस्तिष्क तक पहुंचता है। सामान्य स्थिति में रेटिना पर बनने वाला प्रतिबिंब निरंतर परिवर्तित होकर मस्तिष्क को स्नायु आवेग की सूचना देता है। इससे मस्तिष्क उत्तेजित हो जाता है। तब संवेदी क्षेत्र आवेगों को प्रेरक क्षेत्र की ओऱ भेजता है। इससे भौतिक शरीर चंचल हो जाता है। दर्द या खुजलाहट महसूस होने लगती है। पर त्राटक का अभ्यास सधते ही मस्तिष्क के सारे क्रिया कलाप बंद हो जाते हैं। शरीर को भेजे जा रहे आवेगों पर नियंत्रण हो जाता है। इस तरह योग की उच्चतर अवस्था में पहुंचने के लिए ऊर्जा संचित हो जाती है।

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त्राटक के समय मस्तिष्क को विश्राम का समय मिल जाता है। इसलिए कि मस्तिष्क हर पल स्नायु आवेगों को ग्रहण, उनका विश्लेषण और वर्गीकरण करते रहता है। इस तरह मस्तिष्क बहुत क्रियाशील हो जाता है। यहां तक की नींद में भी मस्तिष्क को जानकारी रहित विभिन्न ऐंद्रिक अनुभूतियां मिलती रहती हैं। त्राटक के समय पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से मस्तिष्क के कामों को बंद कर दिया जाता है। इससे मस्तिष्क को काफी आराम मिलता है। त्राटक मस्तिष्क के विश्राम का प्रभावशाली तरीका है। त्राटक प्राणवाही नाड़ियों यथा इड़ा तथा पिंगला को संतुलित करता है। सुषुम्ना नाड़ी जागृत होती है। इससे उच्च चेतना में जाने का द्वार खुलता है। इस तरह त्राटक साधना काषटकर्मों में अलग महत्व है। हठयोग में इसे दिव्य साधना कहते हैं।

ईसा मसीह ने कहा था– “यदि तेरी आंख केवल एक है तो तेरा समूचा शरीर आलोक से भर उठेगा।“ अब पश्चिम के वैज्ञानिक यीशू के इस बात को आधार बनाकर अनुसंधान कर रहे हैं। कुछ शोधार्थियों का मत है कि यीशू जब एक आंख की बात कर रहे थे तो उनका मकसद निश्चित रूप से त्राटक योग से रहा होगा। शायद इसलिए ईसाई मत में त्राटक जैसी ध्यान क्रिया की बड़ी भूमिका हो गई। प्राचीन काल में ऐसी मान्यता थी और अब अध्ययनों से साबित हो चुका है कि प्रतिदिन एक घंटा ज्योति की लौ को अपलक देखते रहने से लंबे समय में तीसरी आंख पूरी तरह सक्रिय हो जाती है। इससे साधक अधिक प्रकाशपूर्ण, अधिक सजग अनुभव करता है।

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पुनश्चः- ब्रिटिश जर्नल ऑफ ओप्थोमोलॉजी के दिसंबर अंक में छपे एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि जंक फ़ूड, रेड मीट और अधिक वसायुक्त भोजन बुजुर्गों की रौशनी छीन रहा है। इसलिए हानिकारक आहार का सेवन करते हुए योगाभ्यासों से समस्या का समाधान की कामना करना भारी भूल होगी। हमें यह सदैव याद रखना होगा कि योगमय जीवन में आहार की बड़ी भूमिका होती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

 

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