योग और आयुर्वेद के जरिये दूर करें मोटापा

योग और आयुर्वेद के जरिये दूर करें मोटापा

सेहतराग टीम

ओवरवेट एवं मोटापा कम करने में कसरत एवं योग काफी मददगार साबित होते हैं। शरीर के वजन को नियंत्रित रखने के लिए बुनियादी शर्त यह है कि हम शरीर में जितनी ऊर्जा ( कैलोरी) लें, उतनी खर्च भी करें। अगर आप लगातार बैठकर काम करने वाली नौकरी में हैं तो आपकी कैलोरी खर्च नहीं होगी। ऐसे में आपको नियमित व्‍यायाम या योग की शरण में ही जाना होगा अन्‍यथा चर्बी बढ़ती चली जाएगी।

योयो इफेक्‍ट से बचें

लेकिन यह ध्यान रखें कि व्यायाम नियमित नहीं रहने पर लेने के देने पड़ सकते हैं। अगर आपने कसरत से 5 किलोग्राम वजन कम किया और फिर कसरत बंद कर दी तो वजन में बहुत अधिक वृद्धि हो जाएगी और दूसरी बार आसानी से कम भी नहीं होगी। इसे योयो इफेक्ट कहते हैं। योग गुरू सुनील सिंह मोटापा कम करने के लिए योगमुद्रा, भुजंगासन, हालासन, त्रिकोणासन और अग्निसार की क्रियाएं बताते हैं।

कैसे होती है योगमुद्रा

योगमुद्रा करने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले पद्मासन लगाना चाहिए। फिर दोनों हाथ पीठ के पीछे ले जाकर बाएं हाथ से दाईं कलाई और दाएं हाथ से बाईं कलाई पकड़ें। फिर धीरे-धीरे आगे की ओर झुककर यथासंभव ठोडी को जमीन से लगाने का प्रयास करें। इसके बाद धीरे-धीरे सामान्य अवस्था में आ जाएं। झुकने ओर उठने में जल्दबाजी न करें। यह खतरनाक हो सकता है। यह क्रिया कम से कम 3-5 बार करें। नए साधक ज्यादा झुक नहीं सकते। मगर अभ्यास जारी रखें। इस आसन से कमर ओर पेट की चर्बी कम होती है, मधुमेह में लाभ होता है और मेरूदंड लचीला होता है।

सावधानीः हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, पेप्टिक अल्सर, हार्निया के रोगी, गर्भवती महिलाएं और कमर दर्द के पीड़ित व्यक्ति यह आसन न करें।

भुजंगासन 

इस आसन में हमारे शरीर की आकृति फन उठाऐ ‘भुजंग’ के समान होती है, इसलिए हमारे योगियों ने इसका नाम भुजंगासन रखा है। विधि: पेट के बल लेट जाऐं, एड़ियां, पंजे, जंघा आपस में मिले हुए होने चाहिए। पंजे बाहर की ओर तान कर रखें, दोनों हाथों को कन्धों की बगल में रखें, कोहनियां जमीन को स्पर्श करती हुई होनी चाहिए। अब अपने कमर तक के भाग को हाथों का सहारा लेते हुए धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाऐं, हमारी दोनो कोहनियां कुछ मुड़ी हुई तथा गर्दन पीछे की ओर रहेगी। कुछ देर इसी अवस्था में रूकें, धीरे-धीरे समान्य अवस्था में वापस आऐं। ध्यान रहे इस आसन को करते वक्त श्वास की गति समान्य होनी चाहिए और अपनी क्षमता से ज्यादा आसन में ना रहें। इस आसन के कम से कम 5 चक्रों का अभ्यास अवश्य करें।

लाभ व प्रभाव: इस आसन के अभ्यास से कमर दर्द, गर्दन दर्द, साईटिका जैसे रोगों से छुटकारा मिलता है। टाँसिल, थायराइड ग्रंथि स्वस्थ बने रहते हैं। पेट व आंतो के विकार दूर होते हैं। पीठ, छाती, हृदय, गर्दन व कन्धों की मांस-पेशियां मजबूत होती हैं। लीवर को लाभ मिलता है। यह आसन मधुमेह में रामबाण का काम करता है। महिलाओं की ओवरी और गर्भाश्य को मजबूती प्रदान करता है। मेरूदण्ड लचीला बनता है। जिनकी नाभि बार-बार गिरती है, उनके लिए बहुत उपयोगी है।

सावधानियां: हर्निया, अल्सर और हृदय रोगी इस आसन का अभ्यास ना करें। गर्भवति महिलाऐं, योग गुरू के सान्निध्य में इसका अभ्यास करें।

हलासन

योगियों ने इस आसन का नाम ‘हलासन’ इसलिए रखा है क्योंकि इसे करते वक्त हमारे शरीर की मुद्रा ‘हल’ के समान हो जाती है इसलिए इसे ‘हलासन’ कहा जाता है।

विधि: सबसे पहले पीठ के बल लेट जाऐं। दोनों पैरों को बिना घुटने मोड़े एक साथ उठायें और धीरे-धीरे उन्हें बिल्कुल ऊपर तक उठा लें। फिर नितम्बो सहित कमर को भी पैरों के साथ ही उठाते हुए पैरों को बिल्कुल सिर के पीछे ले जाऐं। पैरों के अंगूठे व उंगलियों को जमीन को स्पर्श करें। इस पूरी प्रक्रिया में घुटने नहीं मुड़ने चाहिए और हमारे श्वास की गति समान्य रहनी चाहिए। जितनी देर हम सरलता पूर्वक इस आसन में रूक सकते हैं रूकें, ना रोक पाने की अवस्था में धीरे-धीरे टांगों को ऊपर उठाते हुए सीधा करें और फिर जमीन पर वापस आ जाऐं। नये साधक कम से कम 10 सैकेण्ड तक इस आसन में रूकने का प्रयास करें। अभ्यस्त होने पर 2 से 3 मिनट तक भी रूक सकते हैं। इसका अभ्यास एक बार ही करें। आसन खत्म होने के बाद शवासन जरूर करें।

लाभ व प्रभाव: यह आसन मधुमेह, यकृत, प्लीहा और पेट के रोगों के लिए अत्यन्त उपयोगी है। इससे मेरूदण्ड सबल और लोचदार बनता है। बालों के लिए लाभदायक है, चेहरे पर लालिमा लाने एवम् आंखों के रोगों के लिए यह रामबाण का काम करता है। लम्बी अवधि तक युवावस्था को बनाऐ रखने में सहायक है। थाईराईड, पैरा-थाईराईड ग्रन्थियों की कार्यक्षमता बढ़ाता है। दमा, श्वास सम्बन्धित रोग, तपेदिक और महिलाओं से सम्बन्धित सभी रोगों में लाभदायक है।

सावधानियां: स्लिप डिस्क, गर्दन दर्द, हृदय रोगी, उच्च रक्तचाप, व हर्निया के रोगी इसका अभ्यास ना करें। हालांकि योग का थोड़ा कठिन आसन है, अभ्यास करते वक्त धैर्य अवश्य रखें, अच्छा हो कि योग गुरू के सान्निध्य में अभ्यास करें।

डायटिंग से कमजोर हो सकता है शरीर

मोटापे के आयुर्वेदिक उपचार के बारे में वैद्य ए.के. त्रिपाठी का कहना है कि मोटापा खानपान पर निर्भर करता है। मोटे व्यक्तियों को भूख ज्यादा लगती है परंतु पचाने की शक्ति कम रहने के कारण वसा या फैट बढ़ने लगता है।

मोटापा दूर करने के लिए आजकल डायटिंग बहुत प्रचलित है जिसमें लोग खाना कम कर देते हैं किंतु स्वास्थ्य की दृष्टि से यह ठीक नहीं है। इससे शरीर कमजोर हो सकता है। डायटिंग से बेहतर है सलाद, रेशवाले पदार्थ, गाजर, टमाटर, चुकुंदर, मेथी का साग आदि का सेवन करना।

आयुर्वेद में मोटापे की बहुत सरल चिकित्सा विधि है जिसे पंचकर्म कहते हैं। इसके तहत मसाज या अभ्यंग की क्रिया होती है जिसमें औषधियुक्त तेलों द्वारा नियमित एक सप्ताह से 15 दिनों तक मसाज करने से वसा नियंत्रित हो जाती है और पाचन क्रिया संतुलित हो जाती है। इस क्रिया से 15 दिनों में 3 किलो वजन तक घटने के परिणाम मिले हैं। वैद्य त्रिपाठी के अनुसार मसाज में मोटापे के साथ-साथ हाई ब्लडप्रेशर, पेट की बीमारियों, जोड़ों के दर्द, ह्दय रोग पर काबू पाया जा सकता है।

मोटापा कम करने में पोषाहार विशेषज्ञों की भी खास भूमिका होती है। मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति को ऐसा भोजन करना चाहिए जिसमें चिकनाई की मात्रा कम हो।

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