लॉकडाउन: अबला नहीं सबला हैं महिलाएं

लॉकडाउन: अबला नहीं सबला हैं महिलाएं

राजनंदनी प्रियदर्शी

कोरोना जैसी महामारी से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के बाद लॉकडाउन के दौरान जो प्रेरक कहानियां सामने आ रही हैं उससे महिलाओं के संघर्ष ने उत्साह को दोगुना कर दिया है। इस दौर में जब हम घरों में बैठकर केवल एकटक टीवी की ओर आंख गड़ाए हुए हैं वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया में कई प्रेरक कहानियां भी सामने आ रही हैं। जिसमें मध्य प्रदेश के सागर जिले की एक महिला पुलिसकर्मी की कहानी है। महिला आरक्षक सृष्टि श्रोतिया लॉकडाउन में अपनी ड्यूटी करने के बाद घर आकर लोगों के लिए मॉस्क बनाने काम करती हैं।

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इस प्रेरक कहानी के पीछे छुपा है कोरोना के भय को कम करना। मास्क बनाकर लोगों के बीच वितरित कर रही इस महिला आरक्षक की तरह देश के अलग-अलग हिस्सों में तैनात महिला पुलिसकर्मियों की भी कई प्रेरक कहानियां सामने आई हैं। इस तरह की प्रेरक कहानियों के पीछे सबसे प्रमुख कारण है कि जो लोग महिलाओं को अबला समझ रहे थे आज उन्हें यह समझने की जरूरत है कि महिलाएं अब अबला नहीं बल्कि सबला हैं।

इसी तरह से महामारी के दौरान अस्पताल में तैनात महिला डॉक्टर और नर्सों की कहानियां भी पढ़ने और सुनने को मिल रही हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि महिलाएं अब हर क्षेत्र में पुरुषों के समान कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। बीते कुछ वर्षों की बात की जाए तो महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। आज यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि महिलाओं की जो प्रेरक कहानियां सामने आई है उससे महिलाओं खासकर लड़कियों के लिए प्रेरणा के अलग-अलग द्वार खुल रहे हैं।

लॉकडाउन के दौरान जो सबसे रोचक बातें सामने आ रही है उसमें पुरुषों द्वारा घर के काम में हाथ बंटाने से लेकर खाना बनाने और साफ—सफाई का काम भी शामिल हैं। आज कई सारे वीडियों सोशल मीडिया पर पुरूषों के द्वारा प्रेषित किए जा रहे हैं कि किस तरह से वह घर के काम में हाथ बंटा रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है लॉकडाउन ने एक नई तरह की संस्कृति को जन्म दिया है। संयुक्त परिवार की जो पुरानी परंपराएं थी आज उसकी याद लोगों को सताने लगी है। भले ही घर से दूर हों लेकिन फोन पर ही अब हालचाल जानने की प्रवृति बढ़ गई है। एक नई परंपरा सामने आ रही है जो पुरूष और महिला के बीच हो रहे भेदभाव को भी कम कर रही है। नए जमाने में लॉकडाउन ने जो पुरानी संस्कृति को जन्म दिया है इसे और आगे बढ़ाए जाने की जरूरत है।

(लेखिका समाजसेवी हैं।)

 

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