अंतरराष्ट्रीय योग दिवस: योग से दीर्घायु नहीं, शतायु
यूं तो इंसान का जीना और मरना अनिश्चितता के भंवर में रहता है मगर योग पर भरोसा करने वाले मानते हैं कि हमारे मनीषियों ने योग के रूप में एक ऐसा ज्ञान हमारे लिए छोड़ा है जो जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत हमारे काम आता है। ये बात दूसरी है कि इस ज्ञान को समय के साथ अधिकांश जनता भूलती चली गई मगर फिर भी देश में कई ऐसे लोग हैं जो इस ज्ञान को घर-घर पहुंचाने से लेकर खुद अपने लिए भी इस्तेमाल कर रहे हैं और इसके जरिये स्वास्थ्य लाभ हासिल कर रहे हैं।
आप योग के किसी भी जानकार से बात करें तो आपको पता चलेगा कि आज योग को सिर्फ आसनों तक सीमित कर दिया गया है जबकि योग वास्तव में जीवन जीने की संपूर्ण पद्धति है। जन्म से लेकर मौत तक एक इंसान को किस तरह व्यवहार करना चाहिए ये संपूर्ण ज्ञान योग शास्त्र में निहित है। विश्व योग दिवस आज के समय में योग के महत्व को पुनः याद दिलाता है। इलाहाबाद के 97 वर्षीय योगाचार्य नर्मदा प्रसाद मिश्र ऐसे ही ज्ञानियों में से हैं जो योग के महत्व को पुन: स्थापित करने के कार्य में जुटे हैं। नर्मदा प्रसाद मिश्र संगम रोड पर नर्मदा योग एवं प्रशिक्षण संस्थान चलाते हैं।
उनका कहना है कि हमारे शरीर में वात, पित्त और कफ को मात्र तीन आसनों- सर्वांगासन, भुजंगासन और पश्चिमोत्तासन के जरिये संतुलित रखा जा सकता है। इसे त्रिकुटासन कहते हैं और यदि ये त्रिदोष (वात, पित्त कफ) संतुलित अवस्था में रहें तो हमें कोई बीमारी होगी ही नहीं। योग के बल पर अपने टूटे हुए कूल्हे को ठीक करने का दावा करने वाले योगाचार्य ने कहा, ‘छह वर्ष पूर्व एक दुर्घटना में मेरा कूल्हा टूट गया था। डाक्टरों ने कहा कि इसे ठीक होने में महीनों लग जाएंगे। मुझे अपने योग पर पूर्ण विश्वास था और मैं घर लौट आया। योगासन से टूटा कूल्हा 20 दिन में जुड़ गया।‘
मिश्र ने योग विद्या अपने बाबा ब्रह्मचारी जी महाराज से ग्रहण की थी और आज उनकी छठी पीढ़ी योग कर रही है। उन्होंने कहा, ‘सही मायने में एक योगी अपनी इच्छा से मृत्यु को प्राप्त होता है। मेरी इच्छा है कि मैं अपने पोते-पोतियों की शादी कर दूं। इसके बाद ही प्राण त्यागूंगा।‘ मिश्र 97 वर्ष के हो चुके हैं और अपनी इस दीर्घायु का श्रेय वे योग को ही देते हैं।
उनका कहना है कि योग में ऐसी ऐसी मुद्राएं हैं जिनके बल पर अपनी छठी इंद्रीय को जागृत किया जा सकता है। हालांकि इसके लिए सतत अभ्यास की जरूरत पड़ती है। खेचरी मुद्रा, वज्रोली मुद्रा जैसी मुद्राएं व्यक्ति को अमरत्व के करीब ले जाती हैं।
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