एनएमसी विधेयक के खिलाफ डॉक्टर और छात्र करेंगे प्रदर्शन

एनएमसी विधेयक के खिलाफ डॉक्टर और छात्र करेंगे प्रदर्शन

सुमन कुमार

केंद्र सरकार द्वारा नेशनल मेडिकल कमिशन बनाने की योजना को पलीता लगाने में देश के डॉक्‍टर जुट गए हैं। देश में डॉक्‍टरों के सबसे बड़े संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने देश के सभी मेडिकल कॉलेजों के डॉक्‍टरों और छात्रों से एनएमसी विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन और आंदोलन करने की अपील की है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने मेडिकल कॉलेजों के सभी छात्रों का आह्वान किया है कि वे विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करें। आईएमए 29 जुलाई को ‘दिल्ली आंदोलन’ करेगी जिसमें चिकित्सा जगत से जुड़े लोग निर्माण भवन (स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय के कार्यालय) से जंतर-मंतर तक मार्च निकालेंगे।

आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सांतनु सेन ने कहा कि यदि एनएमसी विधेयक की धारा 32 नहीं हटाई गई तो सरकार ‘अपने हाथ खून से रंगेगी।’ उन्होंने कहा कि नीम-हकीमी को वैध करने वाली धारा 32 को जोड़ने से लोगों की जान खतरे में पड़ेगी। आईएमए विधेयक के कुछ अन्य प्रावधानों के खिलाफ भी है।

इसने एक बयान में कहा, ‘एनएमसी विधेयक रोगियों की सुरक्षा से समझौता करता है। यह लोकतंत्र, संघवाद और समान अवसर के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन भी करता है।’

वैसे सरकार तमाम विरोध के बावजूद इस विधेयक को कानूनी जामा पहनाने की तैयारी कर चुकी है। केंद्रीय स्‍वास्थ्‍य मंत्री डॉक्‍टर हर्षवर्धन ने 22 जुलाई को इस विधेयक को लोकसभा में पेश कर दिया है जहां सरकार के बहुमत को देखते हुए इसका पारित होना महज औपचारिकता है।

वैसे इस बिल के जिन अन्‍य प्रावधानों पर डॉक्‍टर समुदाय आपत्ति जता रहा है उसमें देश के निजी मेडिकल कॉलेजों में मैनेजमेंट/एनआरआई कोटा की सीटें 50 फीसदी की सीमा से भी बढ़ाने का प्रस्‍ताव शामिल है। आईएमए का कहना है कि इस प्रस्‍ताव से देश के गरीब तबके के बच्‍चों के लिए डॉक्‍टर बनने का सपना कभी पूरा नहीं हो पाएगा क्‍योंकि निजी मेडिकल कॉलेजों में 60-70 लाख रुपये से लेकर सवा करोड़ रुपये तक की फीस भरना उनके लिए संभव नहीं होगा। यानी विधेयक का ये प्रावधान देश के सभी को बराबरी के अवसर के अध‍िकार का खुला उल्‍लंघन करता है और देश के मेडिकल शिक्षा को अमीरों और कॉरपोरेट के हाथों में बेचने की तैयारी है।

एक अन्‍य प्रावधान जिनपर मेडिकल के छात्रों की आपत्ति है वो है एमबीबीएस के आखिरी वर्ष की परीक्षा को नेशनल एक्‍ज‍िट टेस्‍ट के रूप में आयोजित करना। एक ओर जहां सरकार इसे एक क्रांतिकारी कदम बता रही है वहीं मेडिकल छात्रों का कहना है इसमें उत्‍तीर्ण न हो पाने वाले छात्रों की एमबीबीएस की पढ़ाई और आगे बढ़ सकती है। सरकार का कहना है कि इससे देश में डॉक्‍टरों की गुणवत्‍ता सुधारने में मदद मिलेगी।

हालांकि सरकार का ये दावा इस विधेयक की धारा 32 से हास्‍यास्‍पद प्रतीत होता है क्‍योंकि इस धारा के तहत देश में झोला छाप डॉक्‍टरों को वैधता देने की बात कही जा रही है और आईएमए को सबसे गंभीर आपत्ति भी इसी धारा पर है। सरकार का प्रस्‍ताव है कि राष्‍ट्रीय चिकित्‍सा आयोग जरूरत पड़ने पर आधुनिक मेडिसिन की प्रैक्टिस कर रहे ऐसे डॉक्‍टरों को लाइसेंस दे सकता है। जाहिर है कि ये मरीजों की जान से खि‍लवाड़ करने वाली बात है।

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